काश ! बलिया के इन बेवश लोगों की बात सीएम तक पहुंचा देता कोई 'रहनुमा'
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दुबेछपरा, बलिया। दर-ब-दर ठोकरे खाया तो ये मालूम हुआ, घर किसे कहते है, क्या चीज है बेघर होना ? दिन, महीने, साल दर साल गुजरते गए, लेकिन राष्ट्रीय राजमार्ग-31 की पटरियों पर गुजारा कर रहे कटान पीड़ितों को शासन स्तर से अब तक एक अदद छत का सहारा तक न मिला। 18 जून को बलिया आ रहे मुख्यमंत्री से इन पीड़ितों की उम्मीद जगी है। उनका कहना है कि यदि उनकी पीड़ा की सच्चाई कोई रहनुमा मुख्यमंत्री तक पहुंचा देता तो जरूर हम सभी के पास अपना घर हो जाता।
विदित हो कि वर्षो से राष्ट्रीय राजमार्ग -31 के किनारे झोपड़पट्टी में कोई अन्य देश का शरणार्थी नहीं, बल्कि इसी सरजमीं के गरीब-मजलूम वो ग्रामीण है, जो अपना सबकुछ गंगा के कटान में खो चुके है। विडम्बना यह है कि आज तलक इन्हें पुनर्वास के नाम पर सिर्फ और सिर्फ आश्वासन ही मिला है।पचरुखिया से लेकर प्रसाद छपरा ढाले तक सड़क के दोनों ओर बसे इन ग्रामीणों की सुधि लेने वाला कोई नहीं है। चुनावी मौसम में मतदान का महत्व बताकर मत लेने वाले जनप्रतिनिधि भी चुनाव बाद इन्हें भूल जाते है। सर्दी-गर्मी व बरसात की मार झेलकर रहने वाले ये मजलूम मतदान कर अपना फर्ज तो अदा कर देते है, लेकिन जनप्रतिनिधि अपना कर्तव्य स्मरण नहीं रखते। हालांकि अब से कुछ साल पूर्व कुछ कटानपीड़ितों के पुनर्वास योजना का लाभ तो मिला था, लेकिन अब भी बहुत से ऐसे पीड़ित है, जिन्हें पुनर्वास लाभ से वंचित रखा गया है। आलम यह है कि ये कटानपीड़ित अभी मानसून के आगाज से ही सहमे हुए है, अंजाम का परिणाम तो सोचकर ही कांप जाते है। सन 2016 के कटान पीड़ितों को अब भी गृह अनुदान तक नहीं मिला।
रवीन्द्र तिवारी
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