बलिया : अपनों से जुदा माताओं को मिला गैरों का प्यार, बूढी आंखें बनी झरना ; Video वायरल
Ballia News : 'अपनों से जीवन की जीत और अपनों से ही जीवन की हार होती है...।' आप भी ऐसी बातें सुने और देखें होंगे, लेकिन हम आपको एक सच्ची कहानी बता रहे है, जो रविवार (12 मई) यानी अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस को तस्वीर के रूप में सामने आई है। अर्न्तमन को झकझोर देने वाली यह तस्वीर गड़वार स्थित वृद्धाश्रम की है। मदर्स डे को हर किसी ने अपने अंदाज में सेलिब्रेट किया। किसी के लिए मां आदर्श थी तो कोई श्रद्धा का पुष्प समर्पित कर भूली बिसरी यादों को ताजा किया। लेकिन यहां जो नजारा दिखा वह भावी भविष्य के लिए विचारणीय है।
यह वीडियो बलिया के गड़वार स्थित वृद्धाश्रम का है, जो सोशल मीडिया पर वायरल है। Mother's day पर सारथी सेवा संस्थान ने माताओं का पांव पखारा। इस दौरान बूढ़ी माताओं के आंखों के आंसू बता रहे थे, अपनो से दूर होने की तड़प। #Ballia #mothersday #वृद्धाश्रम #viralvideo pic.twitter.com/miC6EFZ3Y1
— Purvanchal 24 (@24_purvanchal) May 14, 2024
यहां रह रही माताओं को इस खास दिन भी अपनों का प्यार नसीब नहीं हुआ, लेकिन अपनों से जुदा इन बुर्जुग माताओं का दुख और गम बांटने का काम किया सारथी सेवा संस्थान ने। हर रविवार की भांति मदर्स डे पर भी नगरा निवासी संजीव गिरी की अगुवाई में संस्था के सदस्य बुजुर्गों के बीच पहुंचे। सभी ने पूरी श्रद्धा से न सिर्फ बुजुर्ग माताओं का पांव पखारा, बल्कि उन्हें अपनों से अधिक प्यार और दुलार भी दिया।
इस दौरान चौथेपन में अपनों से दूर होने की टीस माताओं की आंखों से अश्रुधारा बन कर बहने लगी। यह दृश्य देख वहां मौजूद सभी की आंखों के कोर को भींगा दिया। आंखों से छलकते स्नेह और जुंबा पर आशीष का शब्द लिए एक एक मां का कहना था, तसल्ली बस इतनी सी है की सुकून है, वरना पूरा परिवार तो बहुत पहले पीछे छूट गया। कई रातें, आंखों में यूं ही गुजरी हैं। इसलिए नहीं कि किसी से कोई उम्मीद या तमन्ना है। बल्कि इसलिए की दूसरों से नहीं अपितु अपने खून से धोखा खाया है।
बेटे-बहू ने जब पराया किया तो उस दर्द को सह पाना बेहद मुश्किल था। अब जब पराए अपने होने लगे हैं, तो लगता है कि पूरी दुनिया ऐसी नहीं है। कुछ लोग अपने होते हुए भी अपने नहीं होते और कुछ से कोई रिश्ता नहीं होता फिर भी अपनों से बढ़ कर होते हैं। यही रिश्ता संस्था के प्रत्येक सदस्य से है। आज यह उम्मीद है, कोई तो अपना है।
उधर, संजीव गिरी का कहना था कि इससे बड़ी सौभाग्य की बात क्या हो सकती है की लोग बाग एक मां का आशीष नही ले पाते और मैं दर्जनों माताओं का लाडला हूं। बदलते दौर में प्राइवेसी और मेरी लाइफ के नाम पर माता-पिता उन्हीं बच्चों की आंखों में खटकने लगते हैं जो कभी उनकी आंखों के तारा हुआ करते थे। इस दौरान संस्था के अन्य सदस्य अवितेश सिंह रोशन, रोहित शर्मा, अभिषेक पाल, दीपक वर्मा, जयशंकर शुक्ला, तारकेश्वर कुमार और मनोरमा सिंह भी मौजूद रहीं।
एके पाठक
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