बहुत कुछ संदेश दे रही बलिया की शिक्षिका स्मिता सिंह की यह गीत
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गीत
आधार छंद-सार छंद
ध्रुव पंक्ति : मानवता हो रही कलंकित, उत्पीड़ित हैं नारी।
धरा मूक है बोझ उठाये, पाप कर्म का भारी।
मानवता हो रही कलंकित, उत्पीड़ित है नारी।।
नैतिकता से दूर सभी हैं, जीवन मूल्य कहाँ है।
लोलुप हो रहना जग चाहे, धन ऐश्वर्य जहाँ है।।
चीरहरण हर दिन होते हैं, आँखें बंद हमारी।
मानवता हो रही कलंकित, उत्पीड़ित है नारी।।
भूल गए संस्कार सभी हैं, छोड़ी अपनी थाती।
आस-पास की कन्याएँ थीं, भाव बहन का लाती।।
पर अब मन में केवल तन है, सीख भूलते सारी।
मानवता हो रही कलंकित, उत्पीड़ित है नारी।।
ठेकेदार बने फिरते हैं, सत्कर्मों के जो भी।
मौका मिलते गिद्ध बने हैं, नोचें आत्मा को भी।।
जाने कौन रूप में बैठे, हैं वो अत्याचारी।
मानवता हो रही कलंकित, उत्पीड़ित है नारी।।
स्मिता सिंह, सहायक अध्यापिका ; मुरलीछपरा बलिया
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