सावधान ! गंगा नदी में चाइनीज मछलियों का बढ़ना खतरनाक
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बलिया। केन्द्रीय अंतरस्थलीय मात्स्यकी अनुसंधान संस्थान के अनुसार चाईनीज रोहू वर्ष 2002 से गंगा, सरयू एवं अन्य सहायक नदियों में भी आने की शुरूआत हुई, जो 2012 तक गंगा में इनकी संख्या बढ़कर 45 प्रतिशत हो गयी। इधर हाल के वर्षों में नमामि गंगे योजना से गंगा के प्रदूषण में कुछ कमी आने से अब गंगा नदी में इनकी संख्या 39 प्रतिशत हो गयी है। वास्तव में इलेक्ट्रॉनिक बाजार में अपना दबदबा बनाने के बाद चीन ने भारत के मछली बाजार को अपना निशाना बनाया और एक वर्ष मे दो बार प्रजनन करने वाली तथा एक चाईनीज मछली द्वारा डेढ़ से दो मिलियन अण्डा देने के कारण और एक वर्ष में ही इनका भार 8 किलो हो जाने के कारण इनका उत्पादन अधिक होने से मत्स्य विभाग भी इनके उत्पादन पर जोर देने लगा। कोलकाता से मछली उत्पादक इनके बीजों को लाकर तालाबों में छोड़कर पालन करने लगे और उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, प० बंगाल सहित पूर्वोत्तर राज्यों में इनका साम्राज्य फैलता गया।
खासतौर से गंगा नदी में इनका आने का मुख्य कारण यह है कि बरसात के दिनों में तालाबों से ये चाईनीज मछलियाँ जलके साथ ओवरफ्लो कर एवं छोटी- छोटी नदी -नालों के डाउन स्ट्रीम के सहारे गंगा में आती हैं। किन्तु सबसे बड़ी बात यह है कि ये चाईनीज मछलियाँ गंगा में विद्यमान देशी रोहू, कतला आदि मछलियों के बच्चों को खाकर इनको समाप्त करने पर तुली हुई हैं, जो गंगा के जल पारिस्थितिकी पर विपरीत प्रभाव डालेगा और गंगा की जल पारिस्थितिकी असंतुलित हो सकती है।
पर्यावरणविद् डॉ. गणेश पाठक ने बताया कि
चाईनीज मछलियों में एक प्रमुख मछली है 'बिग हेड कार्प'। इसकी विशेषता है कि यह सभी प्रकार की जलवायु में अपना विकास कर लेती है। मादा बिग हेड कार्प एक वर्ष में 1.9 मिलियन अण्डे देती हैं और एक वर्ष में एक मछली बढ़कर 8 किलो भार की हो जाती है। इनकी लम्बाई 1.4 मीटर तक हो सकती है। यही कारण है कि मछली उत्पादक तालाबों में इनका पालन कर अधिक लाभ हेतु बाजारों में बेचते हैं। बंगलादेशी भाकुर मछली पर रोक लग जाने के कारण मत्स्य विभाग भी चाईनीज मछली के उत्पादन पर जोर दे रहा है।
सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि चाईनीज मछली पौष्टिक नहीं होती है और न ही स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होती है। बस पेभ भरने के लिए उपयोगी है। चाईनीज मछलियों में तिलापिया एवं कोड भी होती हैं। किंतु यह निम्न कोटि की होती हैं और चीन में उत्पादन होने के बाद भी चीन के उत्पादक अपने बच्चों को नहीं खिलाते हैं, क्योंकि यह हानिकारक भी होती है। चीन इन मछलियों का क्रमशः 80 प्रतिशत एवं 50 प्रतिशत उत्पादन अमेरिका को भेजति है एवं शेष अन्य देशों को। इन चाईनीज मछलियों का दूसरा हानिकारक पहलू यह भी है कि ये जल पारिस्थितिकी के लिए हानिकारक होती हैं। जल पारिस्थितिकी को असंतुलित कर देती हैं कारण कि ये जल में रहने वाले जीव-जंतुओं एवं देशी मछलियों का भक्षण कर जाती हैं। इस लिए देशी स्वास्थ्यप्रद मछलियाँ धीरे- धीरे गनके प्रभाव से समाप्त होती जा रही हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इनका भी बहिष्कार करना आवश्यक हो गया है।
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