मैहर धाम ! जहां 'माई की रसोई' में अन्नपूर्णा स्वरूप विराजमान है मां शारदा

मैहर धाम ! जहां 'माई की रसोई' में अन्नपूर्णा स्वरूप विराजमान है मां शारदा


मैहर। कैमूर तथा विंध्य की पर्वत श्रेणियों की गोद में अठखेलियां करती तमसा के तट पर स्थित त्रिकूट पर्वत मालाओं के मध्य 600 फुट की ऊंचाई पर विराजमान शारदा माता का मंदिर अपने आप अद्वितीय, अकल्पनीय और अवर्णनीय है। मैहर धाम की महिमा को शब्दों में व्यक्त करना वैसा ही है जैसे सूर्य को दीपक दिखना। यहां 'माई ही शब्द है,  माई ही अर्थ। माई ही परमार्थ है, माई ही कर्म। यहां माई ही भाग्य है तो माई ही भक्ति और भाव भी है...।' निःसन्देह माई का यह साक्षात स्वरुप देखना हो तो चले आइए मैहर धाम। यहां मां शारदा का दर्शन करते ही वर्षों की लालसा पलभर में तृप्त हो जाती है। मां का दर्शन और पूजन के अलावा और भी बहुत कुछ है जिसका दीदार न किया तो समझो कुछ विशेष शेष रह गया। मैहर में विद्यमान 'माई की रसोई' इनमे से एक है। जहां साक्षात मां अन्नपूर्णा विराजमान हैं। 'माई की रसोई' में पहुंचते ही न सिर्फ आपको प्रसाद स्वरूप निःशुल्क शुद्ध एवं सात्विक भोजन मिलेगा, बल्कि मां जैसा दुलार भी पाएंगे। फिर देर किस बात की, यदि मैहर धाम आये हैं या आना हो तो मां शारदा के दर्शनोपरांत 'माई की रसोई' भी पहुंचिए, निश्चित निहाल हो जायेंगे। 
हमारी सनातन संस्कृति कहती है कि 'त्वदीयं वस्तु गोविन्दम, तुभ्यमेव समर्पयेत'। मतलब साफ है, 'जो कुछ भी आपने हमें दिया है वो सबकुछ की ही सेवा में समर्पित है।' लेकिन अर्थ युग की इस दुनिया में जहां हम मानवीय धर्म को निरंतर पीछे छोड़ते जा रहे हैं, वहीं 'माई की रसोई' का संचालन कर धीरज पांडेय  ने 'तेरा तुझको अर्पण' वाक्य को सच कर दिखाया है। एक सवाल के जबाब में धीरज पांडेय कहते है कि 'माई की रसोई' का भोजन बहुत ही प्रेम पूर्वक और उत्साह से बनाया जाता है। मन में श्रद्घालुओं को भोजन कराने की शुभ भावना होती है। मां शारदा भवानी को प्रेम पूर्वक भोग लगाया जाता है तो उसमे प्रेम की मिठास भर जाती है। इसीलिए 'माई की रसोई' का भोजन हमेशा स्वादिष्ट ही लगता है।
श्री गुरु काष्णी मां सेवा संस्थान मैहर की ओर से स्टेशन रोड मैहर के चौपड़ा काम्पलेक्स में संचालित 'माई की रसोई' में पूर्वांह 11 बजे से रात्रि 9 बजे तक निःशुल्क प्रसाद (भोजन) मिलता है, जो भाव भरा होता है। ऐसा लगता है कि भोजन के हर अन्न में मां अन्नपूर्णा अमृत घोल दी है। रसोई में स्नेह व प्यार के साथ भोजन पाकर अंतर्मन चहक उठता है और भक्त के मुख से बरबस की निकल पड़ता है...
अन्नपूर्णे सदा पूर्णे, शंकर प्राण बल्लभे।
ज्ञान वैराग्य सिद्धियर्थं, भिक्षाम देहि च पार्वती।


'माई की रसोई' में बनता है मां शारदा का महाभोग
'माई की रसोई' के संचालक धीरज पांडेय व  रजनीश जी ने बताया कि पूर्वांह 11 बजे से रात्रि 9 बजे तक प्रसाद स्वरूप भोजन भक्तों को परोसा जाता है। इसके बाद कीचेन में जो भी प्रसाद बच जाता है, उसे हम सभी रेलवे या बस स्टेशन पर रात में ही अपनी गाड़ी से ले जाकर प्रसाद के रूप में वितरित कर देते है। फिर कीचेन की साफ-सफाई होती है, क्योंकि सुबह 'माई की रसोई' से मां शारदा का महाभोग बनकर भोग के लिए जाता है।


मैहर एक शक्तिपीठ भी 
दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में सती के सामने ही शंकर जी का घोर निरादर किया था। यह अपमान न सह पाने के कारण सती ने तत्काल यज्ञस्थल में ही योगाग्नि से स्वयं को भस्म कर दिया था। जिसके बाद दक्ष यज्ञ का विध्वंस कर भगवान शिव सती के मृत शरीर को लेकर इधर उधर विचरण करने लगे। 
इस तरह सती के शरीर का जो हिस्सा और धारण किये आभूषण जहाँ-जहाँ गिरे वहाँ-वहाँ शक्ति पीठ अस्तित्व में आ गया। वैसे तो शक्तिपीठों की संख्या विभिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न बतायी गयी है। तंत्रचूड़ामणि में जहां शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गयी है वहीं देवीभागवत में 108 शक्तिपीठों का उल्लेख मिलता है, तो देवीगीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र है। वहीं देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों की चर्चा की गयी है। परम्परागत रूप से भी देवीभक्तों और सुधीजनों में 51 शक्तिपीठों की विशेष मान्यता है। कहा जाता है कि जब शिव सती माता का शरीर ले जा रहे थे, उनका हार इस जगह पर गिर गया और इसलिए नाम मैहर (मैहर = माई का हार ) पड़ गया।

भोला प्रसाद, पत्रकार
बलिया (उत्तर प्रदेश)

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