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चाहती थी भूल जाऊं मैं तुझे, याद रखने की ये आदत क्या करें


जुल्म अपनों के, शिकायत क्या करें,
लुट चुका है  सब, अदालत क्या करे।

अब भी हमको है मुहब्बत इस कदर,
कर  रहे  उनकी  हिमायत  क्या  करें।

चल दिये अपने सभी जब छोड़कर,
लग रही ख़ंडहर इमारत क्या करें।

सब ही ढ़लती उम्र में मज़बूर हैं,
है यही शायद रिव़ायत क्या करें।

भूल तेरी क्या कहूं, गलती मेरी,
हम नहीं समझे थे फितरत क्या करें।

चाहती थी भूल जाऊं मैं तुझे,
याद रखने की ये आदत क्या करें।

ख़ाब सब आंखों में तेरी रख दिये,
हो न पाये ग़र हकीकत क्या करें।

श्रीमती रजनी टाटस्कर
भोपाल (म.प्र.)

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