बलिया। समाज नारी-मन को कोमल मानते हुए श्मशानघाट पर ले जाना ही उचित नहीं समझता, परंतु बदलते परिवेश में यह तस्वीर भी बदली है। परिस्थितिवश नारी न सिर्फ अपने प्रियजनों के आखिरी दर्शन के लिए मरघट पहुंचने लगी है, बल्कि अंतिम संस्कार कर मुखाग्नि देने से भी पीछे नहीं हट रही। ताजा मामला बलिया में तैनात एक सहायक अध्यापिका अर्पिता बसाक से जुड़ा है। नायिका प्रधान सीनियर एक्ट्रेस हेमामालिनी की फिल्म 'इंदिरा' की तरह अर्पिता एक बेटे की तरह पूरे दायित्वों का निर्वाह करती हैं। अर्पिता ने जिस महिला को मुखाग्नि दी है, वो उनकी बुआ थीं। इससे पहले अर्पिता अपनी दादी को भी मुखाग्नि दे चुकी है।
बलिया शहर के Hospital Road की रहने वाली अर्पिता बसाक शिक्षा क्षेत्र बेलहरी के उच्च प्राथमिक विद्यालय नंदपुर में सहायक अध्यापिका (Assistant Teacher) है। वर्ष 2015 में बेसिक शिक्षा विभाग में कार्यरत अर्पिता कर्तव्यनिष्ठ अध्यापिका तो है ही, अपने परिवार की दुनिया भी है। अर्पिता के पिता डॉ. एसके बसाक का निधन वर्ष 2007 में हो गया, तब अर्पिता का संघर्ष शुरू हुआ।
अपनी मां अंजना बसाक, दादी मंगला बसाक व बुआ सूचिता बसाक के साथ रही अर्पिता लक्ष्य के प्रति समर्पित रही, लेकिन विधाता परीक्षा लेते रहै। वर्ष 2012 में दादी का मंगला बसाक का निधन हुआ तो अर्पिता ने मुखाग्नि देकर बेटे का फर्ज निभाया। दादी का श्राद्घकर्म करने के बाद अर्पिता अपनी मेहनत व लगन के बदौलत 2015 में सहायक अध्यापक बनी।
रविवार को अर्पिता की बुआ सूचिता बसाक का निधन हो गया, फिर घर की बेटी आगे बढ़ी और मुखाग्नि देकर बेटे का धर्म निभाया। अर्पिता का कोई भाई बहन नहीं है। परिवार में अब केवल मां-बेटी है। अर्पिता के हौंसले और हिम्मत की कहानी आज हर जुबां पर है। अर्पिता नारी सशक्तिकरण का असली उदाहरण बनकर सामने आयी है। अर्पिता की बुआ के निधन पर वृज किशोर पाठक, यज्ञ किशोर पाठक, सुधा पाठक, वन्दना पाठक, विद्या सागर दूबे, शशिकांत ओझा, संतोष सिंह, ओमप्रकाश पाण्डेय इत्यादि ने शोक संवेदना प्रकट किया है। अर्पिता के जज्बे पर दो लाइन...
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