ये माना ग़मों से गले तक भरे हैं,
मगर मत समझना कि तुमसे परे हैं।
मगर मत समझना कि तुमसे परे हैं।
जमाने ने मुझको दिये ज़ख्म लाखों,
अजब ये है सारे ही अब तक हरे हैं।
कभी जिक्र मेरा करोगे ये कहकर,
सभी बस मेरी आरजू में मरे हैं।
हमें बद्दुआ से न है ख़ौफ़ कोई,
मगर जिंदगी की दुआ से डरे हैं।
कहां साथ देता है कोई किसी का,
कि यारों से भी बस मिले मशवरे हैं।
अगर दिल में तेरे तकब्बुर जनम ले,
उठाकर नजर देख बनें मकबरे हैं।
किसी की मदद से न इनकार करना,
यहां एक-दूजे के सब आसरे हैं।
रजनी टाटस्कर, भोपाल (म.प्र.)
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