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बलिया के शिक्षक की नई रचना- 'आगे बढ़ जाओ यारा...'


नदी के बहते पानी को 
छू सकते नहीं दोबारा,
जीवन की बीती भूलकर 
आगे बढ़ जाओ यारा।

रहना गर जीवन में तो 
बन जाओ, शांत सरोवर, 
जिसमें कोई अंगारा फेंके 
खुद बुझ जाये शीतल होकर।

मुख़्तसर सी है जिंदगी 
क्या करना इसे तवील कर,
गम को कर गाफ़िल यहां 
दुखों को तू क़लील कर।

है कष्ट नहीं अकेलापन
यह तो एक सुअवसर है,
बिना रुकावट बढ़ जा आगे 
समय चक्र अमरसर है।

सुनील सागर
शिक्षक एवं रचनाकार
बलिया (उ.प्र.)

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