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भारतीय शिष्टाचार व संस्कृति की जननी और हिंद की पहचान है हिन्दी : विद्यार्थी

दुबहड़, बलिया। हिंदी भारतीय शिष्टाचार एवं संस्कृति की जननी ही नहीं, बल्कि हिंदी हिंद की पहचान है। हिंदी भाषा में आवश्यकतानुसार देसी-विदेशी भाषाओं के शब्दों को अपने आप में सरलता से आत्मसात करने की शक्ति है। उक्त बातें सामाजिक चिंतक एवं गीतकार बब्बन विद्यार्थी ने हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर मंगलवार को पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहीं। 

कहा कि हिंदी वसुधैव कुटुंबकम की भावना जागृत करते हुए विश्व बंधुत्व को बढ़ावा देती है और संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बांधते हुए भावात्मक एकता स्थापित करती है। विशेषकर युवाओं में अंग्रेजी भाषा का बढ़ता प्रचलन हिंदी भाषा के गरिमा के दृष्टिकोण से गंभीर चिंता का विषय है। भारत देश में भाषाओं की बहुलता के कारण भाषाई वर्चस्व की राजनीति ने भाषावाद का रूप अख्तियार कर लिया है। इसी भाषावाद की लड़ाई में जो सम्मान हिंदी को मिलना चाहिए, वह नहीं मिल सका है। इस विषय पर हम हिंदुस्तानियों को गंभीर चिंतन एवं मनन करने की आवश्यकता है।

भारत की नई पीढ़ी विशेषकर युवा पश्चिमी रीति-रिवाजों से काफी प्रभावित हैं। वे वहां के लोगों की तरह पोशाक पहनना चाहते हैं। उनकी जीवनशैली का पालन करना चाहते हैं। उनकी भाषा अंग्रेजी बोलना चाहते हैं। और इसके अलावा हर चीज़ में उनके जैसा बनना चाहते हैं। वे यह नहीं समझना चाहते कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत और मूल्य पश्चिम की संस्कृति की तुलना में कहीं अधिक समृद्ध एवं बेहतर हैं। 14 सितंबर को मनाया जाने वाला हिंदी दिवस तभी सार्थक एवं उपयोगी सिद्ध होगा, जब हम हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति को अपने आपमें पूर्ण रुप से समाहित करेंगे।

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