हिंदी हूं, हां हिंदी हूं
मां भारती के माथे की बिन्दी हूं
प्रखर हूं, वृहद हूं, सम्पूर्ण विश्व की आवाज हूं
भूत हूं, भविष्य हूं, बदलते परिवेश का आज हूं
आन हूं, बान हूं, हर हिंदी की शान हूं
महकते गुलशन का ताज हूं
देखे हैं उतार चढ़ाव मैंने
गुलामी का जंजीरों से निकला माहताब हूं
दिलों में जोश को भरने वाली
तुफानों में जलती लौ का शबाब हूं
अदद खड़ा हिमालय हूं
झर झर बहती कालिन्दी हूं
हिंदी हूं, हां हिंदी हूं
मां भारती के माथे की बिन्दी हूं।
मां भारती के माथे की बिन्दी हूं
प्रखर हूं, वृहद हूं, सम्पूर्ण विश्व की आवाज हूं
भूत हूं, भविष्य हूं, बदलते परिवेश का आज हूं
आन हूं, बान हूं, हर हिंदी की शान हूं
महकते गुलशन का ताज हूं
देखे हैं उतार चढ़ाव मैंने
गुलामी का जंजीरों से निकला माहताब हूं
दिलों में जोश को भरने वाली
तुफानों में जलती लौ का शबाब हूं
अदद खड़ा हिमालय हूं
झर झर बहती कालिन्दी हूं
हिंदी हूं, हां हिंदी हूं
मां भारती के माथे की बिन्दी हूं।
प्रभाकर गुप्ता, सअ
कंपोजिट विद्यालय वाराडीह लवाई पट्टी
शिक्षा क्षेत्र : नगरा-बलिया
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