बेटी
विधा-कुंडलिया
बेटी जग में देव का, होती है वरदान।
उसके होने से खिले, घर रूपी उद्यान।।
घर रूपी उद्यान, महकता है कलियों सा।
सदा भाव से पूर्ण, हृदय ब्रज की गलियों सा।।
मत कर उससे भेद, समझ मत उसको चेटी।
प्रबल सदा हैं भाग्य, कि है जिनके घर बेटी।।
स्मिता सिंह
बालिया, उप्र
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