हवाएं
कभी सोचता हूं
अकेले में बैठ कर
तो वही पुरानी बातें याद आती है।
क्यों चले थे इस राह पर
आखिर ऐसी हवाएं क्यों आती है।
इन हवाओं के झोंके से
बहस करना तो नहीं आता,
पर हां जरूर
एक बात करनी थी कि
बेतार यह बातें कहां से आती है।
क्यों तंग करना चाहती हैं
अकेले में,
इनको खबर से आखिर
क्या लेना देना है।
क्या दुनिया ने इसकी इजाजत दी है।
इन हवाओं से टूटकर
अब कहना पड़ेगा,
किसी के पीछे न पड़ें
इतिहास को अब फिर
बदलना होगा।
कभी सोचता हूं
अकेले में बैठ कर
तो वही पुरानी बातें याद आती है।
क्यों चले थे इस राह पर
आखिर ऐसी हवाएं क्यों आती है।
इन हवाओं के झोंके से
बहस करना तो नहीं आता,
पर हां जरूर
एक बात करनी थी कि
बेतार यह बातें कहां से आती है।
क्यों तंग करना चाहती हैं
अकेले में,
इनको खबर से आखिर
क्या लेना देना है।
क्या दुनिया ने इसकी इजाजत दी है।
इन हवाओं से टूटकर
अब कहना पड़ेगा,
किसी के पीछे न पड़ें
इतिहास को अब फिर
बदलना होगा।
कलम से ✍️
शिव नारायण सिंह "शान"
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