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शिक्षक ने बनाई 'खामोशी की आवाज' की शब्द श्रृंखला


खामोशी की आवाज
मंझधार में छोड़ जाना उनका तू दगा न समझ,
हिम्मत कर पाता तू कैसे समंदर तैर पार जाने का।

अच्छा भी रहा कि सब छोड़ते गये आहिस्ता आहिस्ता,
हुनर कैसे जान पाता तू खुद को आजमाने का।

ये फकीरी भी क्या मस्त चीज़ है, दिल छोटा न कर,
कैसे हजारों हजार रंग देख पाता तू जमाने का।

वीरानियों में खामोशी की आवाज की भी अदा कुछ कम नहीं,
कभी बड़ा शौक रहा है तुझे महफिलें सजाने का।

दौड़ते हांफते हुए ही उम्र जाया कर दी जज्बातों के बाजार में,
मुद्दतों बाद ये मौका है खुद के आइने के पास आने का।

विंध्याचल सिंह, शिक्षक
यूपीएस कम्पोजिट बेलसरा, 
चिलकहर बलिया।

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