बदलती राजनीति में भी अपने राजनैतिक विचारों, विश्वासों, सिद्धांतों का समझौता न करने वाले चंद्रशेखर जी की विशेषता यह थी कि वह गम्भीर मुद्दों पर सिंह के समान गर्जना करते हुए बोलते थे। उनकी वाणी में इतनी शक्ति थी कि संसद में हो रहा शोर शराबा में भी सन्नाटा पसर जाता था। चंद्रशेखर को मुद्दों की राजनीति के लिए जाना जाता है। चंद्रशेखर जी ने 1962 में, 35 साल की युवा आयु में ही अपना संसदीय कैरियर, उच्च सदन, राज्य सभा से प्रारंभ किया।
बलिया जिला मुख्यालय से लगभग 72 किमी दूर स्थित छोटे से इब्राहिमपट्टी गांव के सामान्य परिवार में जन्मे एक ऐसे लोकप्रिय राष्ट्रीय जननेता का जीवन जिसके पास न कोई वंशानुगत राजनैतिक पृष्ठभूमि थी, न विदेशी संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करने के अवसर। बस वो तो गांव के सरकारी स्कूल से लेकर बलिया के सतीश चन्द्र कालेज और फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। इसी शिक्षा के बल पर सदन में स्कालर की तरह अपनी बात रखने वाले चन्द्रशेखर जी सबकी जुबान पर ताला लगा देते थे।
चंद्रशेखर जी आदर्शवान व्यक्तित्व के धनी थे। श्रद्धेय चंद्रशेखर जी हमेशा मानते थे कि राजनीति हाशिए पर खड़ी जनता की सेवा का माध्यम है, सिर्फ सत्ता मात्र प्राप्त करने का साधन नहीं।चंद्रशेखर जी सदैव आदर्शों और विचारधारा पर आधारित राजनीति के हिमायती थे। उन्होंने विचार के साथ आचरण की मर्यादा का सदैव पालन किया। चन्द्रशेखर जी को सिद्धांत से बड़ा पद कोई स्वीकार नहीं था। ठेठ गंवई परिवेश को आत्मसात कर पूरे देश में गांव-किसान की समृद्धि के लिए आवाज उठाने वाले जिनका लिबास कुर्ता धोती पैर में चप्पल और फक्कड़ मिजाज भारतमाता का ऐसा सपूत जो मानवता और देश की समस्याओं को जानने और उसके स्थायी निदान के लिए कन्या कुमारी से दिल्ली के राजघाट तक 4260 किमी पदयात्रा किये। बागी बलिया का ऐसा महान देशभक्त जननेता उत्कृष्ट सांसद जिसका अल्प प्रधानमंत्रित्व काल स्वर्णाक्षरों में अंकित है। सदैव प्रेरणास्रोत युवा तुर्क, युगद्रष्टा, युगपुरुष की 08 जुलाई को 15वीं पुण्यतिथि पर हम विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
उपेन्द्र सिंह, शिक्षक, बलिया की फेसबुकवाल से
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