तरक्की
मेरा गांव भी अब धीरे धीरे
शहर होने लगा है,
तेज तरक्की का इधर भी अब
असर होने लगा है।
बाग बगीचे ताल तलैया न जाने कहां
लुप्त होते जा रहे,
कांक्रीट के जंगलों का नीरस
खंडहर होने लगा है।
पहले जो तैरती थी यहां हवाओं में
एक मीठी सी खुशबू,
जाने किधर से आई है सड़ांध ये
सब जहर होने लगा है।
पहले जो हुआ करते थे साझे से
सुख दुःख अपने,
खास भाई से भाई भी अब अपने
बेखबर होने लगा है।
विंध्याचल सिंह
मेरा गांव भी अब धीरे धीरे
शहर होने लगा है,
तेज तरक्की का इधर भी अब
असर होने लगा है।
बाग बगीचे ताल तलैया न जाने कहां
लुप्त होते जा रहे,
कांक्रीट के जंगलों का नीरस
खंडहर होने लगा है।
पहले जो तैरती थी यहां हवाओं में
एक मीठी सी खुशबू,
जाने किधर से आई है सड़ांध ये
सब जहर होने लगा है।
पहले जो हुआ करते थे साझे से
सुख दुःख अपने,
खास भाई से भाई भी अब अपने
बेखबर होने लगा है।
विंध्याचल सिंह
शिक्षक, UPS बेलसरा कम्पोजिट चिलकहर
बलिया (उ.प्र)
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