कर रही हूं मैं निवेदन प्रेम यह स्वीकार हो,
जिंदगी में हर घड़ी अब आपका दीदार हो।
मखमली रिश्तों में लिपटा इक हसीं घर-बार हो,
चाह है मेरी यही मेरा भी इक परिवार हो।
कौन चाहेगा भला यह, हर घड़ी तकरार हो,
चार दिन की ज़िंदगी भी दर्द से लाचार हो।
एक-दूजे के यकीं पर बीत जाये ज़िन्दगी,
बीच अपने अब नही कोई खड़ी दीवार हो।
लौट तो सकते नहीं है इश्क़ के मारे मगर,
इस वफ़ा की राह में अब जीत हो या हार हो।
रजनी टाटस्कर, भोपाल
जिंदगी में हर घड़ी अब आपका दीदार हो।
मखमली रिश्तों में लिपटा इक हसीं घर-बार हो,
चाह है मेरी यही मेरा भी इक परिवार हो।
कौन चाहेगा भला यह, हर घड़ी तकरार हो,
चार दिन की ज़िंदगी भी दर्द से लाचार हो।
एक-दूजे के यकीं पर बीत जाये ज़िन्दगी,
बीच अपने अब नही कोई खड़ी दीवार हो।
लौट तो सकते नहीं है इश्क़ के मारे मगर,
इस वफ़ा की राह में अब जीत हो या हार हो।
रजनी टाटस्कर, भोपाल
0 Comments