मां
तुम मेरी आदर्श हो,
नित्य निरंतर हर्ष हो।
तुम मेरा उपहार हो,
निश्चल प्रेम प्रकार हो।
नित्य निरंतर हर्ष हो।
तुम मेरा उपहार हो,
निश्चल प्रेम प्रकार हो।
क्रोध-शांति का अद्भूत समन्वय हो,
ममता में सागर से विशाल हो।
जीवन पथ में रोशनी देती हो,
स्वंय को जलाने वाली मशाल हो।
जीवन पथ में रोशनी देती हो,
स्वंय को जलाने वाली मशाल हो।
तुम न तो ईश्वर का अवतार हो,
न मनुष्योपरी कोई चमत्कार हो।
फिर कैसे मां तुम मानव होकर भी,
समस्त मानव जाति से महान हो।
सुनील यादव
सहायक अध्यापक
प्रावि रूद्रपुर, बेलहरी-बलिया
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