क़लम उठा कर लिखने बैठूं,
मां के ऊपर कविता।
मन मेरा ये कहने लगता,
तू सूरज की सविता।
तेरे बारे लिख पाऊं मैं,
ऐसी मेरी क़लम नहीं।
कर पाऊं गुणगान तुम्हारा,
पास मेरे वो शब्द नहीं।
मां बन कर ही मिल पायी,
मैं तेरे दुखते छालों से।
सीख तुम्हारी आज मैं समझी,
क्यों डरती जगवालों से।
पास तुम्हारे रहती हूं जब,
भूला बचपन पाती हूं।
सारे जग को भूल भाल कर,
तुझमें मैं छिप जाती हूं।
दीपक की बाती सी जलती,
तब सारा घर जगमग करता।
सारे घर की केन्द्र बिंदु तुम,
तुम बिन घर ये घर न रहता।
स्मिता सिंह
प्रभारी प्रधानाध्यापक
कम्पोजिट विद्यालय टोला फतेह राय
मुरलीछपरा, बलिया
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