हाईपर टेंशन से बचना है तो
रोज रामायण पढ़ना होगा,
रामचरित में ढलना होगा।
रोज रामायण पढ़ना होगा,
रामचरित में ढलना होगा।
जिसका राजतिलक होना था,
सहज बन गया वनवासी।
नहि तनाव ने डेरा डाला,
मुखमंडल पर नहीं उदासी।
तुम क्यूं छोटी बातें ढोते,
बात बात में विचलित होते।
भूल चूके जीवन रस मानस,
फिर से इसे संजोना होगा।
रोज रामायण पढ़ना होगा,
रामचरित में ढलना होगा।
मांडवी, उर्मिला, सिय, श्रुति कीर्ति,
सबका समय रहा विपरीत।
डटकर सबने किया सामना,
लिख दी रघुकुल में नवगीत।
अब तो अधिक स्वतंत्र है नारी,
तब भी है तनाव की मारी।
चकाचौंध, आपाधापी से तुम्हे,
निकलकर आना होगा।
चाहें डगर हो कांटों वाली,
हंसकर पैर बढ़ाना होगा।
रोज रामायण पढ़ना होगा,
रामचरित में ढलना होगा।
स्नेह राम सा रखना सीखो,
भरत लखन सम भाई प्रीत।
दोस्त रखो सुग्रीव सरीखे,
मन से चाहे तेरी जीत।
कुछ यारी हो, बंदर भालू सी,
मन खुश हो खुलकर हसने से।
पशु-पक्षी से प्रेम करो,
हर फूल और हर डाली से।
नाहक डरते रोग व्याध से,
मन से इसे हराना होगा।
रोज रामायण पढ़ना होगा,
रामचरित में ढलना होगा।
डॉ. मिथिलेश राय
जनाड़ी, बलिया, उ.प्र.।
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