नज़रों की शोख़ी लब की नज़ाकत के जादू से,
लगती बहुत भली है शिकायत कभी कभी
नज़दीक आ के बैठिये, दिल को सुकूं मिले
मिलती है इस तरह हमें फुर्सत कभी-कभी
मंज़िल की आरज़ू में मुसलसल सफ़र करो,
बनते हैं ख़्वाब दिल के हक़ीक़त कभी कभी
बांहों में भीच लेना, जताना वो प्यार का
लगती बहुत है अच्छी शरारत कभी कभी
रजनी टाटस्कर, भोपाल (म.प्र.)
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