बातों बातों में रार क्या करना
यूं भी अपनों पे वार क्या करना
यूं भी अपनों पे वार क्या करना
दिल को यूं बेकरार क्या करना
बेवफाओं से प्यार क्या करना
हार जाए जो जीत कर बाजी,
खुद को यूं भी निसार क्या करना
इक दफ़ा इश्क़ कर लिया... बस कर,
ये ख़ता बार-बार क्या करना
साथ तेरे हसीं था हर मौसम
तू नहीं तो बहार क्या करना
दिल मिलाओ तो बात हो कोई
दो दिलों में दरार क्या करना
मौत आनी है आएगी इक दिन
उसपे इतना विचार क्या करना
रजनी टाटस्कर, भोपाल (म.प्र.)
0 Comments