आपका हर फैसला स्वीकार है,
फिर भला किस बात की तकरार है।
फिर भला किस बात की तकरार है।
तब तलक ही अपना रिश्ता है यहां,
जब तलक बाकी दिलों में प्यार है।
किस तरह सुलझेंगे अब मतभेद भी,
बो रहा नफरत जो अपना यार है।
बो रहा नफरत जो अपना यार है।
भेद जाते मन को ये मतभेद भी,
बात कीजे, बात में यदि सार है।
क्या भला वो हित करेगा सोचना,
जिसको तेरी भूल भी स्वीकार है।
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हर घड़ी बस हां में हां किसके लिए,
क्यूं भला इतना हुआ लाचार है।
सामने तो कुछ नहीं कहते हो तुम,
मान लूं कैसे कि मुझसे प्यार है।
बेसबब ही भीड़ का हिस्सा न बन,
तू अलग है, कुछ अलग मेयार है।
रजनी टाटस्कर, भोपाल (म.प्र.)
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