बलिया। मैंने हर गम को खुशी में ढाला है, मेरा हर इक चलन निराला है, जिन हादसों से मरते है लोग, उन हादसों ने मुझे पाला है...। इस पंक्ति का हर शब्द पीसीएस की उड़ान भरने वाले सुनील सिंह पर सटीक बैठ रहा है, क्योंकि जिन्दगी में तमाम उतार-चढ़ाव के बीच सुनील ने सफलता की इबारत लिखी है।
प्रियधाम पियरौंटा गांव निवासी राम बहादुर सिंह के बड़े पुत्र सुनील सिंह शुरू से ही मेधावी है, लेकिन परिस्थितियां इनकी राह रोकती रही। गांव के सरकारी स्कूल में प्राथमिक शिक्षा पूरी कर सुनील गाजीपुर जनपद में अपनी रिश्तेदारी में चले गये। वहां कक्षा सात से 12वीं तक की शिक्षा जनता जनार्दन इण्टर कालेज से पूरी की, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति सुनील का साथ नहीं दी। फिर, सुनील पढ़ाई छोड़ प्राइवेट काम के सिलसिले में अंडमान-निकोबार चले गये। वहां, करीब तीन साल रहे सुनील ने आईएएस व पीसीएस अफसरों को करीब से देख ठान लिया कि मैं भी अफसर बनूंगा। फिर गांव चले आये, लेकिन अफसर बनने का जुनून कायम रहा और परिस्थितियां प्रतिकूल होने के बावजूद सुनील इलाहाबाद चले गये। इलाहाबाद विश्व विद्यालय से स्नातक के बाद इग्नू से परास्नातक तथा आपदा प्रबंधन में डिप्लोमा किया। इधर, घर पर मां श्रीमती सुबसिनी सिंह, पिता राम बहादुर सिंह व छोटा भाई प्रताप सिंह सनी थे।
सुनील ने इन्हें दिया सफलता का श्रेय
सुनील ने अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता, छोटे भाई प्रताप सिंह उर्फ सनी, बहन सुनीता सिंह, गुरुजन, आकाशवाणी के निदेशक मित्र दिलीप शुक्ला के साथ उन सभी को दिया, जिन्होंने संकट के दौर में हौंसला बढ़ाया।
सपनें को कभी मरने न दें
पूर्वांचल24 से बातचीत के दौरान सुनील ने अपनी हर बात शेयर की। साथ ही, तैयारी कर रहे युवाओं को प्रेरित भी किया। बोले, सपनें को कभी मरने न दें। उसे जिद बना दें, सपनें साकार जरूर होंगे। क्योंकि राहें मुश्किल होते हैं, फिर भी हासिल होते हैं।
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